साल 1994 में शादी के बाद से ही कुछ ठीक नहीं रहा पति की बुरी लतो ने गीता का जीवन जीना दुश्वार कर दिया था। गीता ने नाही एक दिन नाही एक महीना अपितु पूरे ११ साल इंतज़ार किआ पति के सुधरने का लेकिन परिस्थितिया बद से बदतर होती गई और साल 2005 में पति का साथ टूट गया। अब गीता के जीवन में निराशा के अलावा कुछ बचा नहीं तो वो अपने मायके आगई। अब गांव में रहते रहते दिन बीतने लगे. एक दिन गीता ने एक कुपोषित बच्चे को रोते हुये देखा। फिर क्या था गीता ने उसकी ममतामय देखभाल शुरू कर दी।
ये निस्वार्थ प्रेम से सेवा करने का फल ये मिला गीता को, के उन्हें गीता को साल 2006 में भाव से की गई इस पोषक प्रशिक्षक नियुक्त कर दिए। तब से आज तक गीता अपने कोलारस के आंचलिक क्षेत्र में 17 सालों से कुपोषित बच्चों की देखभाल कर रही है और 6802 बच्चो को कुपोषण से मुक्त कर चुकी है। गीता की यही मुहीम गीता को सबसे अलग एक आदर्श महिला बनती है जो नाकि प्रशासनिक अधिकारियों अपितु समाजसेवी संस्थाओं के लिए भी एक मिशाल है।
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बच्चों को तलाशने का चलाया अभियान
कोलारस में पदस्थ पोषक प्रशिक्षक गीता ने विकट स्थतियो में भी अपना सयम नहीं खोया और धैर्य से आगे बढ़ती रही। जब वो मायके में थी तो एक दिन मोहरा गांव के पास उन्होंने एक आदिवासी बच्चे को रोते हुये देखा, उसकी माँ इतनी लाचार थी के उनके पास अपने बच्चे को खिलाने तक के लिया कुछ नहीं था. तब ही उनोने उस बच्चे की देखभाल करने की सोची और अपने 8 साल के बच्चे के साथ उसकी देखभाल शुरू कर दी. साथ ही साथ उन्होंने गांव की और महिलाओं के साथ मिलकर दूसरे कुपोषित बच्चों को तलाशने और देखभाल का जिम्मा ले लिया।
अफसरों ने दिया प्रस्ताव
गीता ने बताया, जब जिले के अधिकारियों को जब इस बारे में पता लगा तो उन्होंने गीता को पोषक प्रशिक्षक बनकर सेवा करने को कहा। गीता तो ऐसे ही किसी मोके की तलाश में थी , इसलिए उन्होंने तुरंत ये प्रस्ताव स्वीकारा और तब से लेकर आज तक पूरै 17 साल में उन्होंने कोलारस के आसपास सहित आदिवासी बस्तियों में रहने वाले 6802 कुपोषित बच्चों को कुपोषण से मुक्त कर दिया और अपने आस पास के एरिया के बच्चों को नया जीवन देने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसका नतीजा ये रहा के वो अपने एरिया की जीजीबाई बन गई।
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बेटे को भी दिए संस्कार
जीजीबाई नाम से बच्चो से लेकर बड़ो तक में फेमस गीता ने अपने बेटे को भी अच्छे संस्कार ही नहीं अपितु खूब पढ़ा लिखाकर उन्हें रायपुर में आयकर विभाग में नौकरी दिलाने में सफल रही जिसका क्रेडिट वो खुद न लेकर गांव वालों की दुआओं को देती है।
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(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारियों एवं मान्यताओं पर आधारित हैं। लेडीज होम इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
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